मूरत में बसने वाले राम ,
दुनिया में फिर आ जाओ ,
भूखे कैसे सोते हैं ,
आकर खुद अनुभव कर जाओ |
मगर जन्म लेना अबकी तुम ,
किसी गरीब के घर में ,
बचपन कैसे खोते हैं ,
आकर खुद अनुभव कर जाओ |
मंदिर के भीतर तुम अपनी ,
मूरत पाओगे ; संपन्न-सुखी ,
बाहर बच्चे क्यूँ रोते हैं ,
आकर खुद अनुभव कर जाओ |
रहकर दुनिया में देखो ,
तेरे नाम पे कितने क़त्ल हुए ,
लाशों को कैसे ढोते हैं ,
आकर खुद अनुभव कर जाओ |
एक बार ज़रा तुम भी टूटो ,
हालातों की मुट्ठी में ,
हम हिम्मत कैसे खोते हैं ,
आकर खुद अनुभव कर जाओ |
रामराज्य तो कहीं नहीं ,
रावण से बदतर हालत है ,
फिर भी कैसे खुश होते हैं ,
आकर खुद अनुभव कर जाओ |
भले अँधेरे फैले हों ,
पर दिल में रोज सवेरे के
हम सपने कैसे बोते हैं ,
आकर खुद अनुभव कर जाओ |
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Main aapki kavitayen padh nahi paya tha, ab padhi hain, to aap bahut paas nazar aate hain.Badhai aur Shubhkamnayen!Aarakshan par aapke vichar kuchh aur vistaar se janna chahta hoon.
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